There is a page on Facebook - कटाक्ष with over more than 1.5 lakh followers. It's not the number of followers of the page that made me write this, there are thousands of other pages with even bigger audience posting things that lure almost everyone, but कटाक्ष has something important. It tells us that "Sarcasm" is not limited to Cat-Dogs images or insults. "Majak majak me sahi baat bol jana hee कटाक्ष hai!"
For the recent event that happened in Bhopal, where 8 SIMI men were gunned down in an encounter after a jailbreak and killing a Security Guard, the page promptly says in a sarcastic way : आम आदमी को बस इतना समझ आता है कि वो आठ एक पुलिस वाले को मारके भागे थे, उन आठों को मार दिया गया. अब आप चाहे एनकाउंटर फेक घोषित कर दो या असली. [The common man only understands that the 8 terrorists were fleeing after killing a police man, and were killed in retaliation, Judge yourself if it's fake or not, they don't care!].
Today, when there is hue and cry over the killing of 8 SIMI members (SIMI is a banned terrorist organisations), कटाक्ष do not misses out the point that one Police Man was also killed in the process for whom there is not a single word by any of these guys. The post also covers the Minority appeasement policy just for the sake of vote bank.
ये वही लोग हैं जिन्हें बटला हाउस एनकाउंटर तो फर्ज़ी लगा था मगर उस एनकाउंटर में शहीद हुए मोहन चंद्र शर्मा नहीं दिखे, ये वही लोग हैं जिन्हें भोपाल में सिमी के आठ आतंकियों का एनकाउंटर भी फर्ज़ी लग रहा है मगर उससे पहले हुई हेड कांस्टेबल रमाशंकर की हत्या नहीं दिखाई दे रही है। ये वही लोग हैं जिन्हें कश्मीर में पत्थरबाज़ी में घायल हुए सीआरपीएफ के जवान दिखाई नहीं देते मगर पेलेट गन से घायल उन्मादी भीड़ ज़रूर दिखाई देती है। ये वही लोग हैं जो जिन्हें सर्जिकल स्ट्राइक भी फर्ज़ी लगी, सेना के दावे भी फर्ज़ी लगे। अफज़ल गुरू भी इन्हें निर्दोष लगा, याकूब मेमन को फांसी हुई तो सुप्रीम कोर्ट भी फर्ज़ी लगा। ये वही लोग हैं जिन्हें एक दादरी होने पर पूरे देश असहिष्णु लगा मगर दुनियाभर में होने वाले हर धमाके में एक वर्ग के लोगों के शामिल होने के बावजूद आतंकवाद का कभी कोई धर्म नहीं लगा। ये वही लोग हैं जिन्हें हर वो चीज़ जिसमें ख़ास वर्ग दोषी पाया जाता है, एक ख़ास पार्टी की साज़िश लगती है। मगर...मगर जब दिग्विजय सिंह जब 26/11 को संघ की साज़िश बताते हैं, तो उन्हें ये मुसलमानों को लुभाने की कांग्रेस की साज़िश नहीं लगती। गृहमंत्री चिदम्बरम जब इशरत जहां को आतंकी न बताने के लिए जांचकर्ताओं पर दबाव बनाते हैं, तो इन्हें वोटबैंक की पॉलिटिक्स नहीं लगती। लालू ने रेलमंत्री रहते जब गोदरा कांड को 'हादसा' साबित करवा दिया, तो उसमें तुष्टिकरण की राजनीति दिखाई नहीं दी। 93 मुम्बई धमाकों को SECULAR बताने के लिए जब तब के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शरद पवार ने झूठ बोला था कि एक धमाका मुस्लिम बस्ती में भी हुआ था (बाद में सीबीआई के सामने उन्होंने कुबूल किया कि मैंने झूठ बोला था), तब भी उन्हें उसमें भी साज़िश और राजनीति नहीं लगी। दिक्कत ये है कि साज़िश लगना तो दूर उन्हें उल्टे ये बातें सच्ची लगी थी, तब भी लगी थी आज भी लगती हैं और आगे भी लगती रहेंगी। सालों तक जब आप खुद को राजनीति में टूल के तौर पर इस्तेमाल होने देते हैं, तो आज ये शिकायत मत कीजिए कि कोई और पार्टी किसी और को टूल क्यों बना रही है!
[This was contributed by Neeraj Badhwar for कटाक्ष].
[This was contributed by Neeraj Badhwar for कटाक्ष].
To the point!
Coming to the recent Chinese Ban demand from the public, कटाक्ष does a कटाक्ष and says : चीन में बने दस लाख जाओमी मोबाइल भारतीयों ने बस इसलिए खरीदे ताकि उनसे वे ये पोस्ट कर सकें कि चीन में बनी लड़ियाँ और झालर का बहिष्कार करें। -- Indians bought 10 lakh Chinese Phone just to post to boycot Chinese Products. You can't add anything to it now.
Pointing out about the JNU students whose curriculum is never ending, the page makes fun of them writing : घर में बैठे किच-किच करने से अच्छा है कि जेएनयू में एडमिशन ले लो सासू माँ। 2-4 हमउम्र क्लासमेट मिल जायेंगे तो आपका भी मन बहल जायेगा।
And for those who are doing some research from a thousand years in JNU - 'न उम्र की सीमा हो, न जन्म का हो बंधन...' में पहला हिस्सा JNU में बैठकर लिखा गया था।
And speaking on the politics being played by different parties over a funeral :
There are many more such posts by the page where you will find that the truth has been spoken and it may be hard for you to accept but deep down, you know its true. Read yourself all the posts : https://www.facebook.com/ktaksh/.
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